ज़रा नज़ाकत से तो छोड़ के जाते हम कभी ना कभी तो तुम्हारे थे बड़ी आसानी से मुड़े और चले गये उठ कर मुझे मुग़ालतें बड़े सारे थे ये ख़त, ये कंगन, ये किताबें, ये बालियाँ सब यूँ ही पड़े हैं दराज में बिखरे तेरे क़िस्से, कहानी, बातें और यादें सब यूँही खड़े हैं रातों में सिमटे मैं अब भी तेरी तस्वीर देख कर मुस्कुरा देती हूँ मैं अब भी टूट जाती हूँ की कभी तो कहीं से तू आ जाये यार तू ही तो था मेरा अपना, यार तू तो ना बदलता, मुझे तुझसे ही गिले सारे थे ज़रा नज़ाकत से तो छोड़ के जाते हम कभी ना कभी तो तुम्हारे थे HB 23/03/2024 @himmilicious
मैं, किताबें, तुम और तुम्हारे साथ बिताया हुआ वक़्त.. जहाँ न तुम कुछ बोलते थे न मैं कुछ बोलती थी, तुम चुपचाप एक कमरे में बैठे हुए अपना काम करते रहते थे और मैं आते जाते अपनी आधी कॉफी तुम्हारी टेबल पर रख जाती थी! मेरे लिए वही सबसे खूबसूरत पल हुआ करते थे जहाँ हम कुछ नहीं बोलते थे लेकिन दिल इस बात से शांत था कि तुम पास हो. कभी शरारत करने का मन करता तो पीछे से आकर तुम्हारे सिर पर टप से मार जाती या तुम मेरा मुंह भींच कर मेरी नाक चूम लेते! और सारा दिन खत्म होने के बाद जब बाहर जाने का मन करे तो तुम्हारा ही पजामा, तुम्हारी ही टी-शर्ट्स या तुम्हारी ही जैकेट पहन के बस ऐसे ही बिखरे बालों में चप्पल पहन कर तुम्हारे साथ निकल पड़ती थी.. मुझे तुम्हारी छोटी उंगली पकड़कर चलना बहुत पसंद था और मैं बस तुम्हें खींच कर किसी भी किताबों की दुकान में ले जाती थी.. ..तुम्हें भी पता था कि मुझे कुछ नहीं चाहिए, मेरे पास जो किताबों का ढेर पड़ा है, वो किताबें जो मैंने कभी नहीं पढ़ीं क्योंकि शायद मैं यह चाहती थी कि कभी तुम कोई भी एक किताब उठाओ और मुझे कुछ सुनाओ, सुनते सुनते मैं सो जाऊँ और तुम मुझे देर तक अपने सीन